उत्तर प्रदेश में करोड़ों का घोटाला!

ख़बरों के मुताबिक, यह कम्पनी केवल सहकारी चीनी मिलों को ही निम्न गुणवत्ता के पम्प सप्लाई करती रही है। अधिकतर निजी चीनी मिलों का प्रशासन अम्बा मेक के पम्प नहीं ख़रीदता है। विभागीय कर्मचारियों की मानें, तो इस तथ्य की जानकारी किसी भी निजी चीनी मिलों के अधिकारियों से की जा सकती हैं। लेकिन प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय पर अपने चहेते सजातीय मेरठ के ही पम्प सप्लायर्स अम्बा प्रसाद जैन को हर साल एक करोड़ से ऊपर के निम्न गुणवत्ता के पम्पों का बिजनेस दिलवाकर लाखों रुपये कमीशन लेने की भी चर्चा है। इलेक्ट्रॉनिक सामानों में भी एलएंडटी तथा सीमेंस कम्पनी को ई-टेंडर में न बुलाकर दिल्ली की अपनी चहेती कम्पनी जेड (5द्गस्र) कंट्रोल को उनकी ही तीन टेंडर पर मनमाने तरीक़े से दर संविदा जारी करने की बात सामने आ रही है। विभागीय सूत्रों के दावे के मुताबिक, यदि वर्तमान प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय के कार्यकाल की क्रय सम्बन्धित सामानों की दर संविदा फाइनल करने की उच्चस्तरीय निष्पक्ष जाँच शासन से करा ली जाए, तो इस जाँच में करोड़ों रुपये के घोटाले और गबन का पर्दाफाश हो जाएगा। विभागीय सूत्र यह भी बताते हैं कि सन् 2017 में भाजपा की योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अपर मुख्य सचिव, चीनी मिल उद्योग गन्ना विकास विभाग, संजय आर. भूसरेड्डी को प्रदेश के गन्ना विकास विभाग तथा चीनी मिलों के प्रबंधन की कमान सौंपी गयी।

 

ग़ौरतलब है कि उस समय तक चीनी मिल संघ द्वारा अपनी चीनी मिलों को मरम्मत हेतु अलग प्रारूप से वार्षिक तकनीकी बजट आवंटन करता था। भूसरेड्डी ने विभाग का प्रभार सँभालने के बाद सन् 2018 से निजी चीनी मिलों की भाँति मिलों के मरम्मत कार्यों हेतु चार रुपये प्रति कुंतल गन्ना पेराई पर बजट का निर्धारण कर दिया है, जिसमें बॉयलर तथा टर्बाइन की मरम्मत शामिल नहीं थी। लेकिन प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय ने संजय भूसरेड्डी द्वारा बनाये गये, तकनीकी बजट के फार्मूला को दर किनारे करके मनचाहे तरीक़े से रुपये आठ रुपये से 12 रुपये प्रति कुंतल की दर से बजट आवंटन करके मिलों के अधिकारियों से लाखों रुपये कमीशन के ले लिए।

कुछ जानकार बताते हैं कि इन्होंने बड़ी चालाकी से तकनीकी बजट आवंटन में हेरा-फेरी करके जिन मदों का बजट भूसरेड्डी के फार्मूले से रुपये चार प्रति कुंतल में होना चाहिए था, उसे मिल की आवश्यकता दिखाकर क्रिटिकल आइटम में स्वीकृत कर दिया। यहाँ तक की सामान्य मरम्मत के कई आइटम को तो कैपिटल आइटम दिखाकर स्वीकृत कर दिया, जबकि वो आइटम वास्तव में कैपिटल के न होकर मरम्मत के बजट के थे। इस प्रकार इस अधिकारी ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति करने हेतु तथा अपनी जेबें भरने हेतु तकनीकी मरम्मत के बजट आवंटन में पिछले छ: वर्षों में भारी हेरा-फेरी की है। शासन के निर्देशों की खुली धज्जियाँ भी उड़ायी हैं। इसलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस पॉलिसी के तहत इस मामले की तत्काल निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए, ताकि करोड़ों के घोटाले का सच सामने आ सके।

हाल ही में मोहिउद्दीन (मोदीनगर) चीनी मिल में लगी भीषण आग मिलों में भ्रष्टाचार का एक और सुबूत है। इस चीनी मिल में प्रधान प्रबंधक के पद पर एक सेवानिवृत्त रसायनविद् को नियुक्त हैं। हैरानी की बात है कि चीनी मिल में लगी आग की भनक मिल के अधिकारियों को तब लगी, बड़ा नुक़सान हो गया। इस हादसे में कई सवाल उठ रहे हैं। एक रसायनविद् को सेवानिवृत्ति के बावजूद दो पद ऊपर कैसे बतौर प्रधान प्रबंधक रखा गया? उन्हें कौन-से नियमों के तहत वित्तीय अधिकार दिये गये? समय-समय पर चीनी मिल की तकनीकी जाँच क्यों नहीं हुई? इस आग से कितना नुक़सान हुआ? क्या पॉवर प्लांट की मरम्मत के बाद यह पेराई सत्र शुरू हो सकेगा? मिल की तकनीकी मरम्मत किसके ज़िम्मे थी? इस भ्रष्टाचार की जाँच कब होगी? इन सवालों के जवाब शायद तब मिल सकें, इस जाँच में स्थानीय किसानों को भी प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया जाए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)