बेरोज़गारी हो कम
पिछले कुछ वर्षों से देश में रोज़गार का संकट गहराया है और पिछलो दो साल में सबसे ज़्यादा नौकरियाँ लोगों ने गँवायी हैं। सरकार हर चुनाव में युवाओं को रोज़गार देने का वादा करती है, मगर दे नहीं पाती। मौज़ूदा केंद्र सरकार की छवि इस मामले में काफ़ी ख़राब है। यह बात सरकार को भी पता है कि रोज़गार की स्थिति ख़राब होने से देश का युवा वर्ग उससे बेहद नाराज़ है। ऐसे में हो सकता है कि इस आम बजट में सरकार कुछ ऐसा करे, जिससे युवाओं का रूख़ उसके प्रति कुछ नरम हो। उम्मीद है कि इस आम बजट में वित्त मंत्री रोज़गार पैदा करने पर विशेष ध्यान देंगी। हालाँकि रोज़गार सृजन पर सरकार के अपने दावे हैं। लेकिन उनमें कितनी सच्चाई है? यह बात बढ़ती बेरोज़गारी से जगज़ाहिर होती है। आँकड़े बताते हैं कि जनवरी, 2020 में देश में बेरोज़गारी दर 7.2 फ़ीसदी थी, जो मार्च 2020 में 23.5 फ़ीसदी और अप्रैल 2020 में 22 फ़ीसदी हो गयी थी। हालाँकि बाद में इसे कुछ कम दिखाया गया। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि रोज़गार लगातार कम हुए हैं, जिससे एक बड़ी तादाद में लोग बेरोज़गार हैं। अब कोरोना की तीसरी लहर अपने चरम पर है और दिसंबर, 2021 में देश में बेरोज़गारी दर फिर पिछले चार महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुँच गयी है। इसलिए सरकार के पास 2022-23 के आम बजट में उद्योगों और रोज़गार को बचाने की कोशिश करनी चाहिए, जिसका वादा प्रधानमंत्री बहुत पहले ही कर चुके हैं।
कृषि क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत
कृषि क्षेत्र में सुधार की हमारे देश में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। किसान आन्दोलन के बीच सरकार ने कृषि क़ानूनों को लेकर कई बार कहा था कि ये किसानों के जीवन स्तर और कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए हैं। लेकिन बाद में सरकार ने माफ़ी भी माँगी। प्रधानमंत्री किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का वादा कर चुके हैं। साल 2022 भी शुरू हो गया; लेकिन न तो कृषि क्षेत्र में सुधार की कोई उम्मीद दिख रही है और न ही किसानों की आय दोगुनी होने के आसार नज़र आ रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस आम बजट में वह कृषि क्षेत्र के बजट को बढ़ाकर कुछ ऐसे मूलभूत सुधार करे, जिससे कृषि और किसानों की दशा में ज़मीनी स्तर पर सुधार हो। क्योंकि हमारे कृषि प्रधान देश में कृषि पर ही ज़्यादातर क्षेत्र निर्भर हैं।
बता दें कि वित्त वर्ष 2021-22 में सरकार ने अनुमानित 148.30 हज़ार करोड़ रुपये के कृषि बजट का प्रावधान रखा था, जो कि देश की कुल आबादी में कृषि क्षेत्र पर 70 फ़ीसदी निर्भरता के हिसाब से बहुत कम रहा। सरकार को इसे बढ़ाकर कम-से-कम तीन गुना करना चाहिए। इस बार सरकार से किसान भी बुरी तरह नाराज़ हैं। ऐसे में हो सकता है कि सरकार किसानों को ख़ुश करने के लिए कृषि बजट में भी बढ़ोतरी करे।
वृद्धावस्था पेंशन का बजट भी बढ़े
सन् 2021 में देश में वृद्ध लोगों की संख्या लगभग 1.31 करोड़ थी। माना जा रहा है कि कोरोना-काल में युवा मृत्युदर में बढ़ोतरी होने से वृद्ध लोगों की संख्या बढ़ रही है, जो साल 2041 तक 2.39 करोड़ तक हो जाएगी। इसके अलावा आने वाले समय में सेवानिवृत्ति पेंशन लेने वालों की संख्या भी आने वाले समय में धीरे-धीरे बढ़ेगी। ऐसे में सरकार को वृद्धावस्था पेंशन के बजट को बढ़ाना चाहिए। साथ ही निराश्रित वृद्धों के लिए भी बजट बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके अलावा मौज़ूदा दौर में बढ़ती महँगाई के हिसाब से भी वृद्धावस्था पेंशन में बढ़ोतरी होनी चाहिए।
बात दूसरे क्षेत्रों की
एक अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान जीडीपी के नौ फ़ीसदी रहने की उम्मीद है। यह भी अनुमान जताया जा रहा है कि अगर जीडीपी इस स्तर पर भी रही, तो अगले नौ साल में रोज़गार दर में आठ फ़ीसदी की वृद्धि हो सकेगी। ऐसे में सरकार को जीडीपी की वृद्धि दर को ऊँचा करने की ज़रूरत है, जिसके लिए उद्योगों, कम्पनियों और छोटे व्यापार के साथ-साथ कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। यदि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2022-23 के बजट में विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग), अचल सम्पत्ति (रियल एस्टेट), कृषि, खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग), फुटकर (रिटेल) और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर ख़ास ध्यान देती हैं, तो उम्मीद है कि साल 2030 तक भारतीय जीडीपी में चार लाख करोड़ डॉलर की बढ़ोतरी हो जाएगी।
पिछले कुछ साल से इन सभी क्षेत्रों में मंदी छायी है, जिससे देश को एक बड़ा नुक़सान लगातार उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा महँगाई, ग़रीबी और भुखमरी से भी निपटने की ज़रूरत है, जिसके लिए कर में राहत देना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही रेलवे और दूसरे सरकारी क्षेत्रों को मज़बूत करने की ज़रूरत है, जिससे उन्हें निजी हाथों में देने से बचा जा सके। अन्यथा हालात सँभालना मुश्किल होगा और आने वाले समय में लोगों की परेशानियाँ बढ़ेंगी।