15 मई, 1971 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन जैकपॉट लॉन्च किया और इसके तहत मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों को ट्रैनिंग, पैसा, हथियार और साजो-सामान की सप्लाई मुहैया कराना शुरू किया। मुक्ति वाहिनी पूर्वी पाकिस्तान की मिलिट्री, पैरामिलिट्री और नागरिकों की सेना थी, इसका लक्ष्य पूर्वी पाकिस्तान की आज़ादी था।
भारत के लिए सन् 1971 का युद्ध जीतना इसलिए सम्भव हो पाया, क्योंकि इंदिरा गाँधी ने अपने सैन्य चीफ फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ पर विश्वास किया था। अप्रैल, 1971 में इंदिरा गाँधी पूर्वी पाकिस्तान के हालात देखते हुए कुछ सैन्य क़दम उठाना चाहती थी। लेकिन मानेकशॉ ने इंदिरा गाँधी के मुँह पर इसके लिए मना कर दिया था। एक कैबिनेट बैठक के दौरान मानेकशॉ से इंदिरा गाँधी ने कुछ करने के लिए कहा था। लेकिन मानेकशॉ ने चीन के हमले की आशंका, मौसम की वजह से बाधाओं और सेनाओं की सीमाओं पर तैनाती का हवाला देते हुए उनसे कुछ समय माँगा और इंदिरा गाँधी ने मानेकशॉ पर भरोसा किया।
इंदिरा गाँधी की रणनीति थी कि युद्ध छोटा हो; लेकिन अगर लड़ाई लम्बी खिंचती है, तो दुनिया को पहले से ही पाकिस्तान की करतूत पता होनी चाहिए। इंदिरा गाँधी ने 21 दिन का जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम और अमेरिका का दौरा करके पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे नरसंहार का ज़िक्र किया। इतना ही नहीं, दुनिया के कई नेताओं को ख़त लिखकर भारत की सीमा पर चल रहे हालात की जानकारी भी दी।
भारत की 1971 की जीत सिर्फ़ सैन्य लिहाज़ से ही बड़ी नहीं थी, बल्कि इंदिरा गाँधी ने अपनी कूटनीति का लोहा मनवाया था। अपनी रणनीति से इंदिरा गाँधी ने सिर्फ़ 13 दिन में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये थे और मानवीयता दिखाते हुए लाखों-लाख शरणार्थियों को पनाह भी दी थी।
उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के सबसे भरोसेमंद सचिव परमेश्वर नारायण हक्सर थे, जिन्हें पी.एन. हक्सर के नाम से जाना जाता था। इंदिरा गाँधी और हक्सर दोनों कश्मीरी पंडित थे और दोनों इलाहाबाद से थे। उनकी जीवनी लिखने वाले लेखकों ने पी.एन. हक्सर को सिर्फ़ इंदिरा गाँधी के आँख-कान के रूप में ही नहीं, बल्कि उने एक अल्टर इगो (अनन्य मित्र) के रूप में भी वर्णित किया है।
बांग्लादेश को मुक्त कराने में इंदिरा गाँधी की कूटनीति में सबसे महत्त्वपूर्ण मोड़ सोवियत रूस के साथ भारत का मैत्री समझौता था। इंदिरा गाँधी ने भारत की गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की विचारधारा से समझौता करते हुए यह क़दम उठाया था। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि रूस के साथ भारत के 20 साल के समझौते की पृष्ठभूमि में बांग्लादेश का मुक्ति युद्ध ही था।
रूस से समझौते के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का सामना करना भी पड़ा था। सवाल उठा था कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के चैम्पियन के तौर पर भारत ऐसे कैसे कर सकता है? निर्वासित बांग्लादेशी सरकार का खुला समर्थन करना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के राजनीतिर करियर के सबसे बड़े फ़ैसलों में से एक था। इंदिरा गाँधी के इस फ़ैसले में कूटनीति, विवेक, संयम और कौशल की छाप थी; जिसने एक स्वतंत्र सम्प्रभु राष्ट्र के जन्म को सम्भव किया था।