आप का सपना: भाजपा-कांग्रेस मुक्त भारत

कयास लग रहे हैं कि केंद्र सरकार दिल्ली में एमसीडी चुनावों से बचने का रास्ता निकालने की साज़िश रच रही है। आरोप लगाये जाते रहे हैं कि भाजपा की तरफ़ से बहुत पहले-से ही कहा जाता रहा है कि भाजपा में एक देश एक चुनाव, चीन की तर्ज पर जीवन पर्यंत एक राजा, हम 50 साल तक शासन करेंगे जैसी बातों के अलावा चुनाव बन्द कराने जैसी आवाज़ें उठ चुकी हैं। इसी के मद्देनज़र तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भाजपा, $खासतौर पर प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ खुलकर आवाज़ उठा चुके हैं। ऐसे और भी कई नेता हैं।

लेकिन इन सबसे हटकर कुछ दिन पहले एक और बात जो सामने आयी, वह यह कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अभी कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते दिखे थे। नीतीश कुमार भाजपा सरकार की वादाख़िलाफ़ी को लेकर नाराज़ बताये जाते हैं। पिछले दिनों उन्होंने प्रधानमंत्री की वादाख़िलाफ़ी को लेकर आवाज़ भी उठायी थी। हालाँकि सुनने में आया है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें ख़िलाफ़ शान्त कर लिया है।

इधर बिहार में गठबंधन की एनडीए सरकार के गिरने के भी कयास लगे थे। अभी कुछ दिन पहले विकासशील इंसान पार्टी प्रमुख और बिहार सरकार में मंत्री मुकेश साहनी ने सिर उठाया था, जिसके बाद उनके तीन विधायक भाजपा में शामिल हो गये। नीतीश कुमार उसी के बाद नाराज़ दिखे थे। इधर उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की जीत से अधिकतर विपक्षी दलों में नाराज़गी बढ़ गयी है। उनका आरोप है कि भाजपा ये चुनाव ईमानदारी से नहीं जीती है।

भाजपा पर आरोप लग रहे हैं कि वह देश में गृहयुद्ध जैसे हालात खड़े कर रही है। कुछ लोगों ने तो फ़िल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को भी इसी का हिस्सा बताया। इस फ़िल्म को 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी का हिस्सा बताया जा रहा है। उनका मानना है कि इसी के चलते भाजपा शासित राज्यों में यह फ़िल्म मुफ़्त में और कर मुक्त (टैक्स फ्री) करके लोगों को दिखायी गयी और कुछ ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों में इस फ़िल्म पर से कर (टैक्स) हटाकर इसे दिखाने पर ज़ोर दिया गया।

इस बीच तेज़ी से बढ़ी महँगाई ने भाजपा को सवालों के घेरे में लिया है, जिससे केंद्र से लेकर राज्य तक की भाजपा सरकारें बचती नज़र आ रही हैं। विपक्षियों का यह भी कहना है कि चुनावों के बाद अचानक बढ़ी महँगाई ने इस तरह की गतिविधियों को और भी हवा दी है। इन दिनों बिहार में यही स्थिति नज़र आती है, जहाँ सरकार टूटने तक के कयास लग रहे हैं।

हालाँकि इसमें कोई दो-राय नहीं कि महँगाई, बेरोज़गारी और बार-बार महामारी के बीच पिसती जनता किसी ऐसे तीसरे दल की तलाश कर रही है, जो उसे राहत दे सके। लेकिन उसे कोई ऐसा राष्ट्रीय चेहरा नज़र नहीं आ रहा, जो उसकी यह इच्छा पूरी करते हुए कांग्रेस मुक्त और भाजपा मुक्त सरकार देश में दे सके। वाम मोर्चा पहले दो बार ऐसा कर चुका है। एक बार सन् 1989 में और एक बार सन् 1996 में, और दोनों बार वह सफल रहा।

हालाँकि सन् 1989 में तीसरे मोर्चे के गठन में भाजपा भी शामिल थी, जिसके सहयोग से जनता दल की सरकार बनी थी। अब एक बार फिर देश किसी तीसरे मोर्चे या दल की तलाश करता दिखायी दे रहा है, जिसकी कुछ झलक आने वाले अगले कुछ महीनों में दिखायी दे सकती है। ख़िलाफ़ जनता के लिए भाजपा मुक्त और कांग्रेस मुक्त सरकार एक सपना ही है, जिसके हक़ीक़त में बदलने में वक़्त भी लग सकता है।

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)