आक्रमण

जानकारों के मुताबिक, यह आने वाले समय में 125-130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच सकता है। फ़िलहाल युद्ध रूस और यूक्रेन तक सीमित रहने से कुछ अच्छे की उम्मीद की जा सकता है। युद्ध के दौरान अचानक विकल्प तलाश करना किसी के लिए भी सम्भव नहीं था। तेल को लेकर हर देश का सप्लाई नियम पहले से तय होता है और अचानक एक देश दूसरे को सप्लाई नहीं कर सकता। युद्ध का दूसरा दुष्प्रभाव दुनिया में आर्थिक संकट के ख़तरे का है। कोरोना महामारी के कारण पहले से ही त्रस्त अर्थ-व्यवस्था पर युद्ध की और मार पड़ सकती है। तेल की क़ीमतें पहले ही स्थिति को काफ़ी हद तक अर्थ-व्यवस्था की गाड़ी को पटरी से उतार चुकी हैं। युद्ध का अब दुनिया के देशों के बाज़ार पर विपरीत असर होगा। विदेशी मुद्रा बाज़ार में अनिश्चितता का माहौल बना रहेगा, जिससे आर्थिक मंदी आ सकती है। भारत में तो बाज़ार तब ही गोते लगाता दिख रहा था, जब दोनों देशों के बीच अभी तनाव ही था।

युद्ध के बाद दुनिया भर में गेहूँ का संकट बन सकता है। दरअसल यूक्रेन, रूस, क़ज़ाकिस्तान और रोमानिया दुनिया भर में बड़ी मात्रा में गेहूँ निर्यात करते हैं। युद्ध होने पर यह निर्यात बाधित होगा। भारत इन सबसे कम प्रभावित नहीं होगा। आर्थिक संकट हुआ, तो पहली से डाँवाडोल चल रही भारत की अर्थ-व्यवस्था और ख़राब हालत में चली जाएगी। भारत ने रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद शान्ति पर ज़ोर दिया था। ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी ने 24 फरवरी को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात की थी। भारत ने तनाव शुरू होते ही इस मामले में बातचीत पर ज़ोर दिया, जिसे रूस ने भी सराहा।

बँटेगी दुनिया!

अब यह साफ़ दिख रहा है कि इस युद्ध के बाद दुनिया दो हिस्सों में बँट गयी है। इसमें एक तरफ़ अमेरिका-नाटो सदस्य देश हैं, तो दूसरी तरफ़ रूस-चीन और उनके सहयोगी देशों का गठजोड़। अमेरिका ने युद्ध के बाद रूस और उसके सहयोगी देशों पर कुछ कड़े प्रतिबंध लगाये हैं। दूसरे यूरोपियन देश भी यूक्रेन के साथ भले युद्ध में शामिल नहीं हुए; लेकिन उसे मदद दे रहे हैं। इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों ने तो युद्ध से पहले ही हथियार या दूसरी चीज़ें भेज दी थीं। कुछ जानकार मानते हैं कि युद्ध यदि लम्बा खिंचा, तो यह पहले के दोनों विश्वयुद्धों से कहीं ज़्यादा तबाही वाला साबित होगा। दुनिया के शान्तिप्रिय देश रूस से इस हमले के लिए नाराज़ हैं।

रूस के यूक्रेन में घुसने के बाद यदि रूस समर्थित सरकार या सैन्य शासन आता है, तो तो ठीक है। लेकिन यदि नहीं हुआ, तो रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन की हालत दूसरे अफ़ग़ानिस्तान जैसी हो जाएगी। इसमें कुछ नुक़सान रूस तो को भी उठाना पड़ेगा। हालाँकि अभी तक के हालात में रूस सब पर भारी पड़ा है। सन् 1992 में अफ़ग़ानिस्तान के साथ यही हुआ था, जब रूस वहाँ काफ़ी दिन तक फँसा रहा था; उसका मक़सद भी हल नहीं हुआ था। बाद में सोवियत संघ का विघटन हो गया था। रूस अब सोवियत संघ के जमाने के विपरीत बहुत शक्तिशाली हो चुका है। उसने पुतिन के शासनकाल में ख़ुद को आर्थिक से लेकर सैन्य स्तर तक बहुत मज़बूत किया है। मध्य एशिया में उसकी पकड़ पहले से कहीं मज़बूत हुई है और आधुनिक हथियार उसकी सबसे बड़ी ताक़त हैं। उसके परमाणु हथियार तो किसी पर भी भारी पड़ सकते हैं।

रूस पर प्रतिबंध

रूस के आक्रमण के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवीय कोष ने यूक्रेन के लिए दो करोड़ डॉलर और ईयू आर्थिक सहायता कोष में 1.5 अरब यूरो देने की योजना बनायी है। इसके अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और अन्य देशों ने रूस पर नये और कड़े प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। उन्होंने रूस की कार्रवाई की निंदा भी की है। रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर आक्रमण किया था। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने हमले के बाद कहा कि फ्रांस और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने मॉस्को पर बहुत गम्भीर प्रहार करने का फ़ैसला किया है। इसके तहत रूसी लोगों पर और प्रतिबंध लगाने के अलावा वित्त, ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों पर ज़ुर्माना लगाना शामिल है।

इस बीच रूसी नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने रूस आने जाने वाली ब्रिटेन की उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे पहले ब्रिटेन ने रूसी उड़ान कम्पनी एयरोफ्लोत की उड़ानों पर पाबंदी लगा दी थी। जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने कहा कि हम स्थिति में बलपूर्वक बदलाव की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं करेंगे। किशिदा ने इसके साथ ही नये दंडात्मक क़दमों की भी घोषणा की, जिसमें रूसी समूह, बैंकों और व्यक्तियों के वीजा और सम्पत्ति को फ्रीज किया जाना शामिल है।

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने कहा कि रूस के निर्णय से अनगिनत निर्दोष लोगों की जान जा सकती है। उन्होंने रूसी अधिकारियों पर यात्रा प्रतिबंध लगाने समेत विभिन्न पाबंदियाँ लागू करने की घोषणा की। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने भी बैठक की और हालात पर चर्चा की। संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों के प्रमुख मार्टिन ग्रिफिथ ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के केंद्रीय आपात प्रतिक्रिया कोष को दी जाने वाली दो करोड़ डॉलर की धनराशि से यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में दोनेत्स्क और लुगांस्क और अन्य हिस्सों में आपात अभियानों में मदद मिलेगी।

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने कहा कि उनका देश अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों का समर्थन करेगा; लेकिन एकतर$फा प्रतिबंधों पर विचार नहीं करेगा। परमाणु संकट के समाधान के प्रयास भी कमज़ोर दक्षिण कोरिया ने इसलिए सतर्क रुख़ अपनाया है; क्योंकि उसकी अर्थ-व्यवस्था काफ़ी हद तक अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर निर्भर है। हालाँकि ताइवान ने घोषणा की कि वह रूस के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंध लगाने का समर्थक है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि ऐसे समय में जब ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, अमेरिका, यूरोप और जापान मिलकर रूस को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, तो वहीं चीन की सरकार रूस को व्यापार पाबंदियों में ढील देने की बात कह रही है। यह अस्वीकार्य है।

पुतिन की कल्पना

इतिहास को याद करें, तो सन् 1991 में जब सोवियत संघ अमेरिका के साथ जारी शीतयुद्ध के दौरान टूट गया था, तो उसके कई हिस्से हो गये। यह 25 दिसंबर, 1991 का दिन था, जब रूस के राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन पर से विराट सोवियत संघ का झण्डा उतर गया और रूसी झण्डा चढ़ाया गया, तो राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बोचेव ने इस्तीफ़ा दे दिया। उनके बाद बोरिस येल्तासिन राष्ट्रपति बने, जिनके वर्तमान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बहुत घनिष्ट सम्बन्ध थे। यह येल्तसिन ही थे, जिन्होंने पुतिन को रूस की राजनीति में बढऩे के लिए सीढ़ी का काम किया। पुतिन ने तरक़्क़ी करते हुए 26 मार्च, 2000 को रूस के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता और सन् 2004 में 70 फ़ीसदी मतों के साथ फिर से राष्ट्रपति बन गये। उनके क़रीब से जानने वाले बहुत ही कम लोग हैं। लेकिन जो हैं, उनमें से कुछ का कहना है कि व्लादिमीर पुतिन के मन का सोवियत संघ के विघटन का घाव कभी नहीं भरा और वह वृहद् सोवियत संघ की आज भी कल्पना करते हैं।

भारत पर प्रभाव

भारत के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध पर स्थिति काफ़ी पेचीदा थी। भारत ने बीच का रास्ता अपनाया और बातचीत से मसले को हल करने पर ज़ोर दिया। जानकारों का कहना है कि यह युद्ध भारत की राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक स्थिति को बड़े स्तर पर प्रभावित करेगा। यूरोप या रूस में किसी एक को चुनना भारत के लिए बहुत टेढ़ी खीर है। ज़ाहिर है इस युद्ध ने गुटनिरपेक्ष नीति की सार्थकता को प्रासंगिक कर दिया है। युद्ध भविष्य में बड़ा रूप लेता है, तो भारत की अर्थ-व्यवस्था बहुत बुरी तरह प्रभावित होगी। भारत और यूक्रेन के बीच लम्बे समय से मज़बूत व्यापारिक रिश्ते हैं। यदि हाल के वर्षों का ग्राफ देखें, तो ज़ाहिर होता है कि भारत यूक्रेन के लिए दुनिया का 15वाँ सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है। यही नहीं, भारत के लिए यूक्रेन 23वाँ सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है। युद्ध दोनों देशों के व्यापारिक हितों को तबाह कर सकता है।

भारत बड़े पैमाने पर कुकिंग ऑयल यूक्रेन से आयात करता है। इसके अलावा लोहा, स्टील, प्लास्टिक, इनॉर्गनिक केमिकल्स आदि कई वस्तुओं को यूक्रेन से आयात करता है। दूसरी तरफ़ यूक्रेन के अलावा कई यूरोपीय देशों में भारत दवा, बॉयलर मशीनरी, मैकेनिकल अपल्यांस आदि चीज़ें का निर्यात करते हैं। युद्ध से दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात होने वाली वस्तुओं की सप्लाई फ़िलहाल बन्द हो गयी है। दूसरी बात, जो तबाही रूस ने यूक्रेन में की है, उससे उबरने में उसे अब बहुत समय लग जाएगा। इसका सीधा असर महँगाई पर पड़ेगा। आने वाले समय में कई ज़रूरी वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि हो सकती है। भारत अब तक बड़े पैमाने पर खाने के तेल (कुकिंग ऑयल) को यूक्रेन से आयात करता आ रहा था। युद्ध के बाद अब यह आयात यूक्रेन से नहीं होगा। इस स्थिति में भारत सरकार सूरजमुखी तेल (सनफ्लावर ऑयल) के आयात के लिए दूसरे देशों के विकल्प की तलाश करेगी। हालाँकि आयात शिफ्टिंग नियमों के चलते सरल नहीं। लिहाज़ा खाने के तेलों की क़ीमतें आसमान पर पहुँच सकती हैं, जो कि भारत में पहले ही काफ़ी ऊपर हैं।

युद्ध से वैश्विक आपूर्ति शृंखला (सप्लाई चेन) बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई है। कोरोना महामारी के बाद ग्लोबल सप्लाई चेन पहले से ही दुर्दशा झेल रही है। महामारी कुछ थमने से जो उम्मीद जगी थी, वह युद्ध के बाद फिर धुँधली पड़ गयी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में महँगाई काफ़ी बढ़ेगी। युद्ध ज़्यादा बढ़ता है, तो कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की क़ीमतों बड़ी वृद्धि होगी, जो भारत की मुद्रास्फीति का ग्राफ बढ़ाएगी। भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर युद्ध का गहरा असर दिखेगा। व्यापारिक गतिविधियों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। कच्चे तेल के दाम बढ़ेंगे और देश का आयात ख़र्च बढ़ेगा। इसका असर व्यापार घाटे पर पड़ेगा तथा यह और ऊपर जाएगा। फ़िलहाल तो कच्चे तेल के बढ़ते दामों का भार ऑयल एंड गैस की मार्केटिंग कम्पनियों ने ग्राहकों पर नहीं डाला है; लेकिन इसका कारण देश में चल रहे पाँच विधानसभाओं के चुनाव हैं। देश में 10 मार्च के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम में एकमुश्त बढऩे की पूरी सम्भावना है। तेल के दाम बढऩे से माल ढुलाई महँगी होंगी और खाने-पीने की चीज़ें जैसे सब्जियों-फल, दालें, तेल आदि के रेट महँगे होंगे।

यह महँगाई रिजर्व बैंक के अनुमानित आँकड़ों से ऊपर चली जाएगी, जिससे देश का केंद्रीय बैंक दरें बढ़ाने पर मजबूर होगा। एक्सचेंज रेट पर भी असर आएगा; क्योंकि रुपये की क़ीमतों में और गिरावट आ सकती है। एक्सचेंज रेट पर असर आने से भारत का कुल ट्रेड $खर्च भी बढ़ेगा। यही नहीं, रूस से आयात-निर्यात (इंपोर्ट-एक्सपोर्ट) के आँकड़े देखें, तो साल 2021 में भारत ने कुल 550 करोड़ डॉलर का निर्यात रूस को किया है और 260 करोड़ डॉलर का आयात रूस से किया है। सन् 2021 में भारत का रूल को जाने वाला थर्मल कोल आयात 1.6 फ़ीसदी से घटकर 1.3 फ़ीसदी पर आ गया था। अब इसमें और कमी आने की सम्भावना है। इसके अलावा भारत रूस से कच्चा तेल भी आयात करता है। सन् 2021 में भारत ने रूस से 43,000 बीपीडी क्रूड आयात किया है।

भारत का रूस से होने वाले कच्चे तेल का कुल आयात केवल एक फ़ीसदी है, जबकि गैस आयात 0.20 फ़ीसदी है। हाल ही में गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गैल) का एलएनजी के लिए गाजप्रोम के साथ अनुबंध हुआ है। इसके तहत 20 वर्षों तक 25 लाख टन सालाना आयात का अनुबंध हुआ है। रूस पर अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाये हैं, उनमें तेल और गैस के निर्यात पर रोक शामिल नहीं है और रूस कच्चे तेल और गैस का निर्यात करता रहेगा। यह कुछ राहत की बात है अन्यथा भारत की ओएनजीसी जैसी कम्पनी के तेल की विदेशी यूनिट्स सबसे ज़्यादा रूस में ही हैं।