असंगठित विपक्ष से सत्ता पक्ष मज़बूत

विपक्ष को तो तभी झटका लग गया था, जब राष्ट्रपति चुनाव से कुछ दिन पहले टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने कह दिया कि अगर भाजपा उनसे द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के लिए कहती, तो वह मान जातीं। दिलचस्प यह है कि ममता ने ही विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए यशवंत सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखा था और वह थे भी उनकी ही पार्टी के नेता।

बहरहाल यशवंत सिन्हा अब इस बात से सन्तुष्टि कर सकते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में देश के इतिहास में वह तीसरे सबसे ज़्यादा मत हासिल करने वाले विपक्ष के प्रत्याशी बन गये। उन्हें 36 फ़ीसदी मत हासिल हुए। मुर्मू ने विपक्ष के साझे उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराया भी बड़े अन्तर से। मुर्मू को 2,824 मत मिले, जिनका मत-मूल्य (वोट वैल्यू) 6,76,803 है; जबकि सिन्हा को महज़ 1877 मत मिले, जिनका मूल्य 3,80,177 है। चौथे चरण में सिन्हा को मुर्मू से ज़्यादा मत मिले। हालाँकि मुर्मू की पहले के तीन चरण की बढ़त इतनी ज़्यादा थी कि इससे कोई अन्तर नहीं पड़ा।

लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर 776 सांसदों के मत मान्य थे, जिनमें 15 मत रद्द हो गये। कुछ सांसदों ने मत नहीं डाले। इस तरह कुल 748 सांसदों के 5,23,600 मूल्य के मत पड़े। मुर्मू को 72 फ़ीसदी सांसदों का समर्थन मिला और वह कुल मतों में से 64.03 फ़ीसदी मत हासिल कर विजयी घोषित हुई हैं। इधर यशवंत सिन्हा को देश के तीन राज्यों में एक भी मत नहीं मिला; जबकि देश का कोई ऐसा राज्य नहीं रहा, जहाँ से मुर्मू को मत न मिले हों। केरल में बेशक कुल 140 विधायकों में से मुर्मू को सि$र्फ एक मत मिला।

आंध्र प्रदेश में जिन 173 विधायकों ने मत डाले उन सभी ने मुर्मू को मत दिये। नागालैंड में सभी 59 और सिक्किम के सारे 32 विधायकों ने भी मुर्मू को मत डाले। सिन्हा को विपक्ष के ही कई मतों के क्रॉस होने से नुक़सान उठाना पड़ा।

उप राष्ट्रपति चुनाव : धनखड़ बनाम अल्वा
उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए ने किसान पृष्ठभूमि वाले जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाकर किसानों को लेकर ख़राब हुई अपनी छवि को सुधारने की कोशिश की है। इससे यह तो ज़ाहिर हो ही गया कि उत्तर प्रदेश का चुनौतीपूर्ण विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद भाजपा में किसान समर्थक को लेकर आशंका रही है। भले धनखड़ किसानों के कोई बड़े नेता न हों, भाजपा उनके नाम पर किसान समर्थक होने का दावा करेगी ही। उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए 6 अगस्त को चुनाव होना है, उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा पूरी ताक़त से मैदान में जुटी हुई है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने साझे रूप से पूर्व केंद्रीय मंत्री मार्गरेट अल्वा को मैदान में उतारा है, जो राज्यपाल भी रही हैं। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव की ही तरह विपक्ष बिखरा-बिखरा दिख रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी अल्वा को समर्थन नहीं देने की बात कह चुकी हैं। देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, अकाली दल, शिवसेना, तेलगु देशम पार्टी जैसे गैर-एनडीए दलों का समर्थन हासिल कर पाते हैं या नहीं। मुर्मू को इन दलों के समर्थन का कारण उनका आदिवासी होना था। देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह सभी दल फिर एनडीए के साथ जाते हैं या मार्गरेट अल्वा को समर्थन देते हैं? ऐसा होता है, तो धनखड़ के लिए मुकाबला मुश्किल हो जाएगा।