अशोका विश्वविद्यालय घोटाले से शिक्षा तंत्र शर्मसार

सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार की जड़े इस क़दर फैली हैं कि आये दिन इसे लेकर ख़ुलासे होते रहते हैं। लेकिन निजी तंत्र (प्राइवेट सिस्टम) में जब भ्रष्टाचार का ख़ुलासा होता है, तो लोग भौचक्के रह जाते हैं। ऐसा ही मामला दिल्ली से सटे हरियाणा के सोनीपत में अशोका विश्वविद्यालय में सामने आया है। विश्वविद्यालय के संस्थापक प्रणव गुप्ता और विनय गुप्ता ने सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया तथा अन्य बैंकों के साथ 1,626 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला किया है। इस घोटाले का पता तब चला, जब 31 दिसंबर, 2021 को पैरावोलिक ड्रग लिमिटेड की कम्पनी पर दिल्ली, पंचकूला और चंड़ीगढ़ सहित देश के 12 शहरों में सीबीआई के छापेमारी हुई। छापेमारी के बाद इस बात का भी ख़ुलासा हुआ है कि गुप्ता ब्रदर्स विश्वविद्यालय के निदेशक (डायरेक्टर) हैं। दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप होने पर विश्वविद्यालय के अध्यापकों के साथ छात्रों ने गुप्ता को बर्ख़ास्त करने की सरकार से माँग की है। उन्होंने कहा कि जब अशोका विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी, तब इसका आधार और उद्देश्य यही था कि यह विश्वविद्यालय देश-दुनिया में ज्ञान और संस्कृति में अपनी पहचान स्थापित करेगी। लेकिन मौज़ूदा समय में जो भ्रष्टाचार सामने आया है। इससे विश्वविद्यालय की साख को धक्का लगेगा। इसलिए अशोका विश्वविद्यालय पर बड़े पैमाने पर सुधार की ज़रूरत है।

बताते चलें कि विश्वविद्यालय का विवाद से पुराना नाता रहा है। मार्च-अप्रैल 2021 में जब स्तम्भकार प्रताप भानु मेहता ने इस बात को लेकर इस्तीफ़ा दिया था कि विश्वविद्यालय में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लग रहा है। ऐसे में वातावरण में उनका रहना यहाँ ठीक नहीं है। प्रताप भानु ने सरकारी की नीतियों का मुखर विरोध अपने लेख के माध्यम से किया है और किसान आन्दोलन की कई बार आलोचना की थी। मेहता के विरोध और लेख को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन का दबाव था कि सरकार की इस तरह की आलोचना से बचना चाहिए। स्तम्भकार मेहता के इस्तीफ़ा के बाद ही अगले दो दिनों बाद देश के जाने-माने आर्थिक मामलों के जानकार प्रो. अरविन्द सुब्रमण्यम ने भी अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। तब भी विश्वविद्यालय पर सवालिया निशान लगे थे। अशोका विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अध्यापक ने नाम न छापने पर ‘तहलका’ को बताया कि जब तक स्तम्भकार प्रताप भानु मेहता और प्रो. अरविन्द सुब्रमण्यम का इस्तीफ़ा वापस नहीं हो जाता है, तब तक विश्वविद्यालय में हालात सामान्य नहीं होंगे।

अशोका विश्वविद्यालय से जुड़े वरिष्ठ एक कर्मचारी ने बताया कि गुप्ता ब्रदर्स की राजनीतिक पहुँच के चलते तमाम मामले अक्सर सामने नहीं आते थे। लेकिन बुद्धिजीवियों से जबसे पंगा हुआ है, तबसे विश्वविद्यालय में फैले भ्रष्टाचार को ख़ुलासे को लेकर आशंका प्रबल हो गयी थी; जो अब सामने आ गयी है। लेकिन मौज़ूदा समय में विश्वविद्यालय में सियासी माहौल दिन-ब-दिन गरमाता जा रहा है। सूत्रों से पता चला है कि अगर विश्वविद्यालय में प्रशासनिक किसी प्रकार का कोई फेरबदल होता है, तो निश्चित तौर पर उन लोगों को मौ$का दिया जाएगा, जो देश की सियासत से जुड़े होने के साथ-साथ उस विचारधारा सहमत हैं, जिसको मौज़ूदा समय में सरकार बढ़ाना चाहती है। क्योंकि अशोका विश्वविद्यालय देश-दुनिया के उन शैक्षिण संस्थानों में नाम है, जहाँ पर कई अतंरराष्ट्रीय कोर्स एक साथ चल रहे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. एच.के. खन्ना का कहना है कि किसी भी विश्वविद्यालय में फैला भ्रष्टाचार इस बात की पुष्टि करते हैं कि वहाँ पर शिक्षा के अलावा अन्य अवसरों को मौक़ा दिया जा रहा है। उनका कहना है कि जिस तरीक़े से स्तम्भकार भानु प्रताप मेहता और भारत सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यण का इस्तीफ़ा हुआ है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि अशोका विश्वविद्यालय में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। और जो भ्रष्टाचार के मामले विश्वविद्यालय के सामने आये हैं, वो शिक्षा और विश्वविद्यालय के लिए ठीक नहीं है।