अलग राह पर हैं अमरिंदर सिंह; किसके साथ जाएंगे, यही सवाल

अमरिंदर 80 साल के आसपास हैं और लोग मानते हैं कि उन्हें सिद्धू को अपने उत्तराधिकारी के रूप में समर्थन देना चाहिए था, लेकिन कर वे इससे उलट रहे हैं। सिद्धू की पंजाब में ज़मीनी पकड़ से कोई इंकार नहीं कर सकता। अमृतसर से वे तीन बार सांसद रहे हैं। अब विधायक हैं। पंजाब में सिख और गैर सिख दोनों में वे बराबर लोकप्रिय हैं। पंजाब से बाहर भी सिद्धू की लोकप्रियता है। ऐसे में अमरिंदर की अपनी ही पार्टी के युवा नेता को चुनाव में हराने की ‘कसम’ का जनता में सही सन्देश नहीं गया है। सिद्धू के विरोध में डूब चुके अमरिंदर इतने अनुभवी होने के बावजूद कैसे इस ज़मीनी हकीकत को नजरअंदाज कर रहे हैं, यह आश्चर्य की बात है।

कहा जाता है कि अमरिंदर यह टोह लेने की कोशिश कर रहे हैं कि कितने विधायक हकीकत में उनके साथ आ सकते हैं। चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस ने जिस तरह मुख्यमंत्री बनाकर तुरुप का पत्ता चला है, उससे कांग्रेस विधायक दल में  किसी बड़े विघटन की संभावना नहीं दिखती। अमरिंदर सिर्फ एक ही तरीके से कांग्रेस सरकार के लिए समस्या बन सकते हैं और वह यह है कि कांग्रेस के 20 से ज्यादा विधायक राजा अमरिंदर के साथ चले जाएं। पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार इसकी संभावना न के बराबर मानते हैं। ज़मीनी हकीकत आज भी यह है कि चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस अभी भी अन्य दलों के मुकाबले बेहतर स्थिति में है।

अमरिंदर कांग्रेस को अपनी तरफ से झटका देने की कोशिश कर ज़रूर रहे होंगे। अपने पद से महरूम होने का जिम्मेवार वे कांग्रेस में राहुल-प्रियंका-सिद्धू की तिकड़ी को मानते हैं। सोनिया गांधी के प्रति उनकी नाराजगी सिर्फ इतनी है कि वे युवा टोली से उनकी कुर्सी बचा नहीं पाईं। वे भाजपा के संपर्क में हैं, इसकी चर्चा कई दिन से है। भाजपा को अमरिंदर सिंह का साथ आना बहुत मुफीद होगा। भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर इसे कांग्रेस के नेतृत्व, खासकर राहुल गांधी-प्रियंका गांधी के खिलाफ बगावत, के रूप में पेश करेगी। भले अमरिंदर की नाराजगी के कारण और हों।

यह भी हो सकता है कि कुछ विधायक साथ आएं तो अमरिंदर अपना कोई अलग गुट पंजाब में बना लें और चुनाव का इन्तजार करें। आम आदमी पार्टी (आप) भी चाहेगी कि अमरिंदर सिंह जैसा कद्दावर नेता उसके साथ आ जाए। लेकिन आप अमरिंदर   का शायद अंतिम विकल्प ही होगा, क्योंकि आप का नेतृत्व वरिष्ठता में अमरिंदर से कहीं ‘जूनियर’ है। लिहाजा भाजपा उनका सबसे संभावित ठिकाना हो सकता है, पेंच सिर्फ किसानों के आंदोलन और नाराजगी का है !