निजता का उल्लंघन वाली इस घटना ने यूनिवर्सिटी के मेनेजमेंट, क़ानून और समाज के सामने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। यह जगाने वाली घटना है, क्योंकि देश में हर दिन और हर घंटे इसी तरह की घटनाएँ होती रहती हैं। क़ानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूकता की कमी, सामाजिक कलंक के डर और क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों के भरोसे की कमी के कारण ऐसी अधिकांश घटनाओं की रिपोर्ट नहीं की जाती है। इस मामले में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस प्रकरण की जाँच शुरू करवायी है, जिसमें कहा गया है कि बेटियाँ पंजाब की गरिमा और गौरव हैं। मजिस्ट्रियल जाँच के आदेश के अलावा एक विशेष जाँच दल का गठन किया गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने भी इस मामले में स$ख्ती से निपटने के लिए पंजाब के डीजीपी को पत्र लिखा है। इसके बाद घटना की प्राथमिकी धारा-66(ई) आईटी अधिनियम (गोपनीयता का उल्लंघन) के तहत दर्ज की गयी, जिसमें आरोपियों पर दृश्यरतिकता यानी छिप-छिपकर देखने (जो आईपीसी की धारा-354 (सी) के तहत एक अपराध है) का आरोप लगाया गया है।
इस घटना ने एक बार फिर निजता के अधिकार को सुरक्षित रखने का साफ़ सन्देश दिया है? वास्तव में छात्राओं की निजता का उल्लंघन बड़ी चिन्ता का विषय है, जो सार्वजनिक रूप से उभरे रोष के बीच इस बात पर ज़ोर देता है कि निजता की रक्षा की जानी चाहिए। इन मामलों से यह भी ज़ाहिर हुआ है कि उपलब्ध क़ानून साइबर अपराधों से निबटने में नाकाम रहा है।